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बरसात में रिंगवर्म (दाद) व आयुर्वेदिक समाधान

बरसात में हमारी त्वचा अनेकों जीवों जैसे फंगस बैक्टीरिया ,वायरस आदि से हमेशा संपर्क में में आते रहते है इसके बावजूद भी यह अपना स्वास्थ्य बनाये रखने के विभिन्न कार्यों का संपादन करती रहती है  लेकिन जब वातावरण में अत्यधिक गर्मी होती है और उसके साथ उमस  होती है और गीलापन रहता है तब फंगस इन्फेक्शन या रिंगवर्म का इन्फेक्शन का खतरा अधिक रहता है  |

इसमें त्वचा के प्रभावित क्षेत्रों पर लाल धब्बे और चकत्ते के रूप में दिखाई देता है जिसमें खुजली के साथ-साथ हल्की जलन भी होती है। दाद स्कैल्प, पैर, कमर, दाढ़ी या अंडरआर्म, स्किन के फोल्ड आदि जगहों पर अधिक होता हैं। अक्सर ये गोल घेरे के आकार में होती है, इसलिए इसे रिंगवार्म कहते हैं। दाद होने का मुख्य कारण मिट्टी और हमारी हवा में पाए जाने वाले फंगस हैं 

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वर्षा ऋतु में होने वाले रोग व उनसे बचाव

वर्षा ऋतु  से  'आदानकाल ' समाप्त होकर सूर्य दक्षिणायन हो जाता है और विसर्गकाल शुरू हो जाता है | वर्षा ऋतु में वायु का प्रकोप तथा पित्त का संचय होता है ।गर्मी के दिनों में लोगों की पाचक अग्नि मंद हो जाती है ,वर्षा ऋतु  में यह और भी मंद हो जाती है जिसके कारण पाचनशक्ति कम हो जाने से अजीर्ण, बुखार, वायुदोष का प्रकोप, सर्दी, खाँसी, पेट के रोग, कब्जियत, अतिसार, प्रवाहिका, आमवात, संधिवात आदि रोग होने की संभावना रहती है ।

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इम्युनिटी व इम्युनिटी बढ़ाने के उपाए

हर कोई चाहता है की वो स्वस्थ रहे और और अपने जीवन को मस्ती के साथ जिए व अपने कर्तव्यों का सही से निर्वहन कर सकें  इसलिए हम  स्वस्थ रहने के लिए तरह तरह के उपाए करते रहना चाहिए | आज हर कोई अपनी इम्युनिटी बढ़ाने की कोशिश में लगा हुआ है, इम्युनिटी या रोग प्रतिरोधक क्षमता किसी भी सूक्ष्म जीव जैसे वायरस , बैक्टीरिया  व अन्य दूषित पदार्थ से शरीर को लड़ने की क्षमता देती है और शरीर को बीमारियों से लड़ने की शक्ति प्रदान करती हैं।

हमारे शरीर को प्रतिरक्षा की बहुत आवश्यकता होती है, तभी यह विभिन्न प्रकार के रोगों और इन्फेक्शन से लड़ सकता है, इसलिए जरुरी है कि अपने शरीर का ध्यान रखें, हेल्दी डाइट लें और अपने इम्यून सिस्टम और इम्युनिटी का ख्याल रखें।

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अश्वगंधा एवं उसके उत्पाद

अश्वगंधा के कच्चे मूल से अश्व के समान गंध आती है इसलिए इसका नाम अश्वगंधा रखा गया | अंग्रेजी में इसे विंटर चेरी कहते हैं. यह ज्यादातर सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है |

अश्वगंधा एक बलवर्धक रसायन, बाजीकरण, बलवर्धन, शुक्र, वीर्य पुष्टिकर है आचार्य चरक ने अश्वगंधा को अच्छा बल्य औषधि माना है|

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ग्रीष्म ऋतु आहार व वायरस के इन्फेक्शन से बचाव

इस समय ग्रीष्म ऋतु शुरू हो गई है साथ ही इस समय वायरस की महामारी भी फैली हुई है अतः हमें अपनी व समाज की अधिक देखभाल की जरूरत है। ग्रीष्म ऋतु में कफ का शमन व वायु का संचय होने लगता है।

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याददश्त बढ़ाने के प्राक्रतिक एवं आयुर्वेद उपचार

 

आज के दौर की जीवनशैली में तनाव और चिंता के कई कारण होते है! हर कोई कभी न कभी इसकी वजह से परेशान जरूर रहता है! बच्चो की बात की जाये तो परीक्षा के समय में तनाव के  कारण अधिक नींद का आना ये सब कारण हमे देखने में आते है या आपका बच्चा दिमाक से कमजोर है,

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मधुमेह का आयुर्वेद उपचार

 

आजकल मधुमेह की समस्या दिन प्रतिदिन ज्यादा  देखने मे आरही है  बदलती जीवनशैली , तनाव और खाने पीने  के गलत तरीके कारण मधुमेह यानि शुगर की बीमारी तेज़ी से बढ़ रही है डाइबिटीज़  कंट्रोल करने के लिए कुछ लोग अंग्रेज़ी दवा और देसी आयुर्वेद उपचार का सहारा लेते है पर उनके मन मे अक्सर एक सवाल होता है ,क्या शुगर का जड़ से इलाज हो सकता है !

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मोटापे का आयुर्वेद उपचार

 

आज की व्यस्त जीवन शैली , तनाव और असंतुलित खानपान मोटापे का कारण बनता जा रहा है ,इसके अलावा आजकल थाईराइड बीमारी भी मोटापे की महत्वपूर्ण बजह बनती जा रही  है ! भारत में ही ज्यादातर हर घर में कोई न कोई इस बीमारी से ग्रस्त है| मोटापा वो स्थिति होती है ! जब अत्यधिक अतिरिक्त शारीरिक बसा शरीर पर  एकत्रित हो जाती है जो स्वास्थ पर भी हानिकारक प्रभाब डालने लगती है यह आयु को भी 

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बालों की समस्या के लिये आयुर्वेद -

 

बढ़ते प्रदूषण और आज कल की लाइफ स्टाइल से बालों का उचित देखभाल नही हो पाती है जिससे कम उम्र में ही बालो की समस्या होने लगती है जैसे बाल झड़ना, डेंड्रफ, दोमुहें बाल और रूखा होना ।
बालों की समस्या के कई कारण हो सकते हैं

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भृंगराज आसव से बालों की देखभाल

 

बैद्यनाथ भृंगराज आसव
इसमें मौजूद घटक मानव शरीर के लिए सहायक होते हैं।इसमे भृंगराज(एक्लीप्टा अल्बा,हरीतकी टर्मिनलिया चेबुला) पिप्पली (पाइपर लॉन्गम),लौंग (क्लोव)

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एलर्जी का आयुर्वेद उपचार

 

आमतौर पर जब कोई नाक त्वचा फेफड़ो एवं पेट का रोग हो जाता है ! और इसका इलाज नहीं होता है तो अकसर लोग उसे एलर्जी कह देते है बहुत सारे रोगी  बैद्यनाथ में आते है  और बताते है, की उन्हें एलर्जी है लेकिन क्या है यह एलर्जी इसका ज्ञान हमें अकसर  नहीं  होता यदि रोग 

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शुगर रोगी के लिये आहार विहार व चिकित्सा सूत्र

 

प्रातः शौचादि से निवृत होने के बाद हल्का व्यायाम करें,घूमने जाए । उसके बाद नास्ता करें ।

सुबह का नास्ता
- चना, मूंग ,मोठ को रात्रि में के समय त्रिफला क्वाथ में भिगो दें । प्रातः काल फुले हुए दाने निकालकर उनको उबाल कर प्रयोग करें । 

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बसंत ऋतु में शरीर की देखभाल

बसंत ऋतु को ऋतुओं का राजा माना जाता है इसमें  धूप तीव्रता ज्यादा होती है  ही शीतलता 

यह ऋतु शीत में व्याप्त स्निग्धता को अवशोषित कर लेती है, वायु तेज तथा रुक्ष हो जाती है सभी तत्व बलहीन हो जाते 

है।

हमारी जठराग्निधीमी हो जाती है और कटु तिक्त  कषाय रस तीव्र हो जाते है इसलिए इसमें शरीर का विशेष ध्यान 


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पोल्यूशन से परेशान?

 

पोल्यूशन कि समस्या से शायद ही कोई शहर होगा जहां लोग ग्रसित ना हो दूषित वातावरण कई तरह के संक्रामक रोगों को जन्म देता है साथ ही यह आपकी सेल्स को भी डैमेज करता है।खतरनाक कैमिकल आपके फेफड़े,किडनी और लिवर को भी गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं।

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बैद्यनाथ मधु

 

शहद को संस्कृत भाषा  में मधु कहते हैं।मधु का प्रयोग आयुर्वेदिक औषधियों के साथ अनुपान के रूप में प्रयोग होता है।

आयुर्वेद मेंऐसा माना जाता है कि मधु के साथ सेवन करने से औषधियों के गुणों और 

उनकी बायोअवेलेबिलिटी में इजाफा होता है और शरीर मेंउनका मेटाबोलिज्म भी तेजी से होता है।

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अम्लपित्त (हाइपरएसिडिटी)

 

अनुचित खानपान और आहार बिहार के कारण पित्त प्रकुपित हो जाता है और यह प्रकुपित पित्त अमाशय में अम्ल की मात्रा को बढ़ा देता है तो इस रोग को  अम्लपित्त या हाईपरएसिडिटी कहते हैं

ज्यादा गर्म, तीखा, मसालेदार भोजन करने, अत्यधि खट्टी चीजों का सेवन, देर से पचने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन,

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डायरिया (दस्त)

लगातार लूज मोशन यानि पतला दस्त आना डायरिया कहलाता है।डायरिया वायरल, बैक्टेरियल संक्रमण के कारण तो होता ही है लेकिन सबसे कॉमन कारण है खान-पान में गड़बड़ी, प्रदूषित पानी और आंत की गड़बड़ी। डायरिया में शरीर में पानी की कमी हो जाती है जिसे डिहाइड्रेशन कहते हैं जो काफी गंभीर होता है। इससे शरीर कमजोर हो जाता है, शरीर में संक्रमण फैलने का खतरा काफी बढ़ जाता है। समय पर इलाज नहीं होने पर मरीज की जान भी जा सकती है।

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माइग्रेन

भागदौड़ की जिंदगी,खराब जीवनशैली और मानसिक तनाव की बजह से माइग्रेन के मरीजों  की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है।माइग्रेन एक तरह की न्यूरोलॉजिकल प्रॉब्लम है।  जिसमें रह-रह कर सिर में एक तरफ बहुत ही चुभन भरा दर्द होता है। ये कुछ घंटोंसे लेकर तीन दिन तक बना रहता है। इसमें सिरदर्द के साथ-साथ गैस बननाजी मिचलानाउल्टी जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।

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वायरल फीवर कारण और निवारण

वायरल फीवर इस मौसम में होने वाली एक खतरनाक समस्या है।हर उम्र के लोग इससे पीड़ित हो जाते हैं।इस रोग में सिरदर्द,हल्का या तेज बुखार  ,खांसी जुकाम,गले में दर्द इत्यादि लक्षण होते है।मौसम बदलते ही वातावरण में वायरस सक्रिय हो जाते हैंऔर हमारी इम्यूनिटी बहुत ही कमजोर,जिस वजह से तुरंत ही इंफेक्शन हो जाता है।

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हर्बल चाय

इन दिनों व्यस्त दिनचर्या और अव्यवस्थित खान-पान की आदतों के कारण  मेटाबोलिक प्रॉब्लम्स  बहुत ज्यादा बढ़ गई हैं  हर कोई फिट रहना चाहता है लेकिन समय की कमी के कारण लोग अपने स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान नहीं पा रहे हैं। यदि आपसे कहा जाये की सिर्फ सुबह की चाय आपकी फिटनेस में सुधार कर सकती है तो निश्चित रूप से आपके लिए आश्चर्य का विषय होगा।

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योग

आयुर्वेद विश्व का प्राचीनतम चिकित्सा विज्ञान है। जब पश्चिमी दुनिया में  सभ्यताएं विकास की प्रक्रिया से गुजर रही थीं और पशुवत  जीवन जी रही थी ठीक उसी समय भारतवर्ष में चिकित्सा विज्ञान एवं स्वास्थ्य चिंतन अपने चरम पर था। इसी समय महर्षि पतंजलि ने यौगिक क्रियाओं की खोज की। इन योग क्रियायों का उद्देश्य उत्तम शारीरिक स्वास्थ्य के साथ साथ मानसिक स्वास्थ्य को भी सुद्रण बनाना था।रोगमुक्त रहकर लम्बी आयु प्राप्त करने के लिए योग एक सर्वोत्तम उपाय  है।

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किडनी स्टोन (मूत्रमार्ग के पथरी)

आज के समय में पथरी हो जाना एक आम समस्या है। पथरी का  जिक्र  जगहों की पथरी को लेकर किया जाता हैएक तो गॉलब्लैडर (पित्ताशयकी पथरी और दूसरी यूरिनरी ट्रैक्ट (मूत्रमार्गकी पथरी।यहाँ पर हम मूत्रमार्ग की पथरी के बारे में चर्चा करेंगे।मूत्रमार्ग में  मुख्य भाग होते है ,किडनी,पेशाब की नालियां (युरेटरजिनसे किडनी में बनी हुई पेशाब मूत्राशय में आती है औरमूत्राशय(यूरिनरी ब्लैडर)  जिसमे  पेशाब इकट्ठी होती है।

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वीर्यशोधन बटी

आयुर्वेद में वीर्य को अलग अलग प्रकार से परिभाषित किया है।शुक्र(Sperms) को भी 'वीर्य' भी कहते हैं। शुक्र ऊर्जावान, मलरहित सर्वशुद्ध धातु(Tissue) होती है।चूँकि शुक्र में संतान उत्पत्ति करने की क्षमता होती है इसलिए भी इसे वीर्य कहा जाता है। 

 

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आर्थराइटिस

आर्थराइटिस को आम बोलचाल की भाषा में गठिया कहा जाता है। आयुर्वेद में इसे "संधिवात " कहा जाता है। संधि शोथ इसका मुख्य लक्षण है  जिसका अर्थ है "जोड़ों में सूजन" होना।  स्वाभाविक है की सूजन के साथ साथ जोड़ों में दर्द तो होता ही है।जब इसकी शुरुआत होती है तो सबसे  पहले कोई एक जोड़ प्रभावित होता है जैसे कि  घुटना,उसके बाद यह समस्या अन्य जोड़ों को भी अपनी गिरफ्त में ले लेती है। वैसे तो  आर्थराइटिस किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है

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शिलाजीत

शिलाजीत के औषधीय गुणधर्मों के विषय में शायद ही कोई व्यक्ति अनभिज्ञ हो।आयुर्वेदिक औषधि  के रूप में  इसका प्रयोग सदियों से ऊर्जा और स्फूर्ति बढ़ाने वाली औषधि के रूप में होता रहा है। शिलाजीत  मुख्य रूप से हिमालय में पाया जाता है।यह देखने में काले तारकोल के जैसा लगता है जो सूखने पर चमकीला हो जाता है।यह शिलाओं  में उत्पन्न होता है इसलिए इसे शिलाजीत कहा जाता है।यह प्राकृतिक विटामिन्स और मिनरल से युक्त है।

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खांसी का आयुर्वेदिक उपचार

खांसी आम तौर पर होने वाली एक सामान्य समस्या है जिसके साथ साथ में अक्सर जुकाम भी होता है

आयुर्वेद में खांसी को कफ  विकारों के रूप में जाना जाता है। खाँसी आम तौर पर श्वास नली मैं बलगम के इकट्ठा होने के कारण होती है वैसे तो सभी चिकित्सा पद्धतियों में  खांसी के लिए  बहुत सी दवाओं का वर्णन है  लेकिन आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति  लोगों की जीवनशैली से जुड़े होने के कारण सबसे अधिक लोकप्रिय है एलोपैथिक दवा  आमतौर पर खाँसी को दबाने की कोशिश करती है, लेकिन आयुर्वेदिक उपचार खांसी के मूल को समाप्त करने में एवं जमा हुए बलगम को काटकर बाहर निकालने में सर्वाधिक उपयोगी है

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बैद्यनाथ लिवरेक्स टेबलेट एवं सीरप (लिवर की संपूर्ण सुरक्षा के लिए )

आजकल नियमित खानपान लोगों की जिंदगी का प्रमुख हिस्सा बन  गए है। विषैले हानिकारक तत्व शरीर में प्रवेश करके महत्त्वपूर्ण अंगों को नुकसान पहुंचाते है।लोगों में एलकोहॉल एवं तम्बाकू  पदार्थों के सेवन का चलन भी बहुत ज्यादा देखा जा रहा है।ये हानिकारक पदार्थ भी शरीर को बहुत नुकसान पहुंचाते है। 

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डायबिटीज(मधुमेह)

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में डायबिटीज को दो प्रकार का बताया गया है  टाइप और टाइप

टाइप डायबिटीज इन्सुलिन की कमी से होती है और यह जीवन की किसी भी अवस्था में हो जाने वाला रोग है। इन्सुलिन एक हार्मोन है जो पैंक्रियास  से निकलता है और रक्तशर्करा के लेवल को सामान्य बनाये रखता है ,साथ ही कोशिका के भीतर शर्करा  के विखंडन से ऊर्जा निकलने की प्रक्रिया में  सहयोगी है।

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बैद्यनाथ स्वर्णमहायोगगुग्गुलु

समस्त वातविकारों (All Types of Vataj Rog) में उपयोगी 

 

इस योग में महायोगराज गुग्गुलु को स्वर्ण भस्म के साथ तैयार किया गया है।वैसे तो महायोगराज गुग्गुलु स्वयं ही ८० प्रकार के वात विकारों को ठीक करने का गुण रखता है किन्तु स्वर्ण भस्म की उपस्थति इसे और भी अचूक बना देती है। स्वर्ण भस्म के कारण निर्दिष्ट रोगों में शीघ्र लाभ होता है। 

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स्वर्णशक्ति रस कैप्सूल - स्वर्ण भस्म युक्त प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट

रोग परिचय

बढ़ती उम्र के साथ आने वाली शारीरिक कमजोरी एक सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया है और उसके साथ आती है शिथिलता ,शक्ति एवंस्फूर्ति में कमी, शरीर में निरंतर नए अवयव बनने एवं पुराने अवयव टूटने की क्रियाएं चलती रहती है और इसे क्रिया कोमेटाबलिज़्म कहा जाता है।

कोशिकाओं के भीतर चलने वाले मेटाबोलिज्म के फलस्वरूप कुछ हानिकारक ऑक्सीकारक अणु बनते हैं जो स्वयं अपनी हीकोशिका को नुकसान पहुंचते हैं। 

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अमीबिका टेबलेट : आंव पेचिश व दस्त में उपयोगी

रोग परिचय 

आजकल गंदे पानी और साफ सफाई का ध्यान रखने के कारण बहुत से संक्रामक रोग पैदा होने का खतरा रहता है। पेचिश दस्त भी इसी प्रकार के रोग है। संक्रामक रोगों की रोकथाम  सभी को चाहिए की दूषित खान पान और पानी के सेवन से बचें। नए अध्ययनों  से पता चला है की पेचिश दस्त एंटमीबा हिस्टोलिटिका नामक एक परजीवी   के कारण होता है। ये परजीवी आँतों में अपनी कॉलोनी बना लेते हैं और विषैले पदार्थ आँतों में छोड़ते हैं,इस इन्फेक्शन मल  के साथ म्यूकस बाहर आता है एवं पेट दर्द ऐंठन इत्यादि लक्षण होते हैं।

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बैद्यनाथ प्रोस्टेड टेबलेट - प्रोस्टेड के रोगियों के लिए लाभप्रद

रोग परिचय 

प्रोस्टेड ग्रंथि (पौरुष ग्रंथि ) पुरुषों में पेशाब की थैली के पास पाई जाने वाली एक अखरोट के आकार की ग्रंथि होती है जो वीर्य (सेमिनल फ्लूइड) का निर्माण करती है।५० वर्ष से ऊपर की आयु में अंदरूनी शरीरिक प्रकियाओं एवं हार्मोनल परिवर्तन  के कारण प्रायः प्रोस्टेड ग्रंथि का आकार  बढ़  जाता है,जिससे कि पेशाब की नली पर दबाब पड़ता है और  रुकावट उत्पन्न होने लगती है। इस समस्या को प्रोस्टेट वृद्धि(बी.पी.एच.) कहा जाता है। प्रोस्टेट बढ़ जाने पर व्यक्ति को पेशाब करने में तकलीफ होती है,बार बार पेशाब जाना,पेशाब रोक पाना ,बूँद बूँद पेशाब होना ,पेशाब के रास्ते में इन्फेक्शन इत्यादि लक्षण उत्पन्न होते हैं। 

 

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बैद्यनाथ गुडुची(गिलोय) घन बटी के गुणधर्म व उपयोगिता

आजकल वायरल फीवर , मलेरिया  चिकुनगुनिया डेंगू जैसे रोगों ने सबको परेशान  करके रखा  हुआ है। इसके लिए सबसे अधिक उपयोगी औषधि गिलोय को बताया जा रहा है यहाँ तक कि एलोपैथिक चिकित्सा को ही असली चिकित्सा मानने वाले डॉक्टर्स भी  मरीजों को गिलोय से बनी हुई दवाएं लिख रहे हैं। बैद्यनाथ ने पिछले वर्ष गुडुची (गिलोय)घनबटी के नाम से एक औषधि बनाना आरम्भ किया है  जो कि बहुत गुणकारी है।इसमें गिलोय के हाइड्रोएल्कोहॉलिक  घन  को % बेर्बेरिन की मात्रा तक स्टैण्डर्ड बनाया गया है। 

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