वीर्यशोधन बटी
आयुर्वेद में वीर्य को अलग अलग प्रकार से परिभाषित किया है।शुक्र(Sperms) को भी 'वीर्य' भी कहते हैं। शुक्र ऊर्जावान, मलरहित सर्वशुद्ध धातु(Tissue) होती है।चूँकि शुक्र में संतान उत्पत्ति करने की क्षमता होती है इसलिए भी इसे वीर्य कहा जाता है।
शरीर में ७ धातुएं होती हैं जो मेटाबोलिज्म के दौरान क्रम से दूसरी धातु बदलती रहती है जिनमे से शुक्र सातवीं धातु है जो बहुत ही शुद्ध और श्रेष्ठ होती है,जो शरीर को पुष्ट बनाती है।
शुद्ध वीर्य गाढ़ा, चिकना, सफेद और स्वच्छ होता है। यदि वीर्य पतला,पीला बदबूदार और झागदार हो तो समझिये वीर्य अशुद्ध और विकारयुक्त है, जिसमे संतोनोत्पत्ति क्षमता भी कम होती है।
निम्नलिखित कारणों से वीर्य अशुद्ध हो सकता है
तीखा मिर्च मसालेदार भोजन,मन में अश्लील विचार लाने से ,प्रकृति विरुद्ध आहार विहार से ,मानसिक तनाव से ,बुरे व्यसन जैसे तम्बाकू,सिगरेट ,शराब का सेवन करने से वीर्य अशुद्ध होता है।
उपाय
यदि आप चाहते हैं की वीर्य शुद्ध अवस्था में रहे तो ऊपर बताये गए व्यसन और बुरी आदतों से बचें,धार्मिक किताबें पढ़ें जिससे बुरे ख्याल दिमाग में न आएं। खानपान सात्विक करें और साथ में आयुर्वेदिक ग्रंथो में बताई गई वीर्य को शुद्ध करने वाली श्रेष्ठ दवा वीर्यशोधन बटी का सेवन करें। इस औषधि में चांदी से तैयार भस्म,प्रवाल भस्म ,शुद्ध किया हुआ शिलाजीत,गिलोय और कपूर इत्यादि द्रव्य मिलाये गए हैं। इसकी १ से २ गोली का सेवन मिश्री मिले ठन्डे दूध से करना चाहिए।
पैकिंग -६० टेबलेट