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बैद्यनाथ गुडुची(गिलोय) घन बटी के गुणधर्म व उपयोगिता

आजकल वायरल फीवर , मलेरिया  चिकुनगुनिया डेंगू जैसे रोगों ने सबको परेशान  करके रखा  हुआ है। इसके लिए सबसे अधिक उपयोगी औषधि गिलोय को बताया जा रहा है यहाँ तक कि एलोपैथिक चिकित्सा को ही असली चिकित्सा मानने वाले डॉक्टर्स भी  मरीजों को गिलोय से बनी हुई दवाएं लिख रहे हैं। बैद्यनाथ ने पिछले वर्ष गुडुची (गिलोय)घनबटी के नाम से एक औषधि बनाना आरम्भ किया है  जो कि बहुत गुणकारी है।इसमें गिलोय के हाइड्रोएल्कोहॉलिक  घन  को % बेर्बेरिन की मात्रा तक स्टैण्डर्ड बनाया गया है।  यह चिकित्सको द्धारा  बहुत उपयोग किया जा रहा है। फिर भी एक सामान्य व्यक्ति के मन में बैद्यनाथ की इस औषधि को लेकर कुछ प्रश्न हैं जैसे-

 

-  हाइड्रोएल्कोहॉलिक  घन क्या   होता है?

- गिलोय के घन को .०० % बेर्बेरिन तक स्टैण्डर्ड करने का क्या मतलब है?

- संशमनी बटी से बैद्यनाथ गुडुची (गिलोय) घनबटी किस प्रकार अलग है ?

-बैद्यनाथ गुडुची (गिलोय)घनबटी का  मूल्य बाजार में उपलब्ध अन्य गिलोय के प्रोडक्ट्स से अधिक क्यों है?

.गुडुची (गिलोय)घनबटी मुख्य रूप से किन किन रोगों में उपयोगी है ?

 

आइये ऊपर पूछे गए सवालों का उत्तर क्रम से पढ़ते हैं -

 

-  हाइड्रोएल्कोहॉलिक  घन क्या   होता है?

पारंपरिक तरीके से  औषधि का घन  बनाने के लिए जड़ी-बूटी को पानी के साथ तब तक गर्म करके छाना जाता है जब तक की छना हुआ द्रव इतना गाढ़ा  जाए की ठंडा होने पर उसकी बटी बनाई जा सके. इसे जल के साथ बनाया गया घन कहते हैं। घन बनाने से फायदा ये होता है कि औषधि के पानी में घुलनशील सभी कार्यकारी द्रव्य (एक्टिव प्रिंसिपल) उस घन में जाते हैं। और इस घन की बटी बनाकर  बाजार में बिक्री के लिए उपलब्ध किया जाता है। 

अब अगर गंभीरता से सोचें तो एक प्रश्न दिमाग में कौंधता है कि पानी में घुलनशील द्रव्य तो घन में गए लेकिन उन द्रव्यों का क्या जो सिर्फ अल्कोहोल में घुलते हैं और पानी में नहीं ? इसका मतलब पानी में बनायीं  गयी घनबटी में एक जड़ी बूटी  के सारे गुणधर्म नही होते ?

 

जी हाँ ,आपका विचार बिलकुल ठीक है,पानी के साथ बनाये गए घन में जड़ी बूटी के सारे कार्यकारी द्रव्य नहीं होते जो की वास्तव में किसी जड़ी बूटी के संपूर्ण औषधीय  गुणों का निर्धारण करते हैं। 

उक्त समस्या को समझते हुए बैद्यनाथ ने गुडुची (गिलोय)घनबटी बनाने में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए गिलोय के पानी के साथ - साथ अल्कोहोल में भी घन बनाया जिसे कि  हाइड्रो-अल्कोहोलिक एक्सट्रेक्ट (पानी अल्कोहोल में बनाया गया घन ) कहते है। इस हाइड्रो-अल्कोहोलिक एक्सट्रेक्ट में गिलोय में पाये जाने वाले सभी कार्यकारी द्रव्य होते है,इसी कारण गुडुची (गिलोय)घनबटी बाजार में उपलब्ध अन्य गिलोय के प्रोडक्ट्स से कई गुना ज्यादा उपयोगी है। 

 

 - गिलोय के घन को .०० % बेर्बेरिन तक स्टैण्डर्ड करने का क्या मतलब है?

इसे एक उदाहरण से समझते है,गाय  के दूध में सामान्यतौर पर कार्बोहाइड्रेट .९० %,फैट .४० %,प्रोटीन .३० %,मिनरल . % बाकि पानी होता है 

यदि किसी गाय के दूध में फैट की % सामान्य से कम हो तो अनुमान लगाया जा सकता है की अन्य जरुरी तत्व  भी उसी अनुपात में कम हो जाते है। यहाँ हम कह सकते हैं कि एक स्वस्थ गाय  का दूध .३० % फैट तक स्टैंडर्ड है तो निश्चित ही  अन्य जरुरी तत्व भी उसी अनुपात में अपनी सामान्य मात्रा में होंगे।  

अब अपने विषय पर वापस आते है ,बाजार में अलग-अलग क्वालिटी का गिलोय उपलब्ध है।  ताज़ी  गिलोय भी एक दूसरे के सापेक्ष कम या ज्यादा गुणों वाली होती है,सबसे अच्छी  गिलोय वो होगी जिसमे घनबटी में  बेर्बेरिन % होगा,गुडुची (गिलोय)घनबटी में एक्सट्रेक्ट इस प्रकार निकलते है की बेर्बेरिन % ही रहे,चूँकि एक द्रव्य का मानक निर्धारित है अतः हम मन सकते है की अन्य  द्रव्य भी उसी अनुपात में उस एक्सट्रैक्ट में  होंगे    

 

- संशमनी बटी से बैद्यनाथ गुडुची (गिलोय)घनबटी किस प्रकार अलग है ?

संशमनी बटी में गिलोय का घन पानी में बनाते हैं जबकि गुडुची (गिलोय)घनबटी में पानी अल्कोहल (हाइड्रोअल्कोहॉलिक एक्सट्रैक्ट) के साथ घन बनाया जाता है। 

 

-बैद्यनाथ गुडुची (गिलोय)घनबटी का  मूल्य बाजार में उपलब्ध अन्य गिलोय के प्रोडक्ट्स से अधिक क्यों है?

 

किसी जड़ी बूटी का हाइड्रोअल्कोहॉलिक एक्सट्रैक्ट निकलना एक महँगी तकनीक है और उसे स्टैंडर्डाइज़्ड करना भी। स्वाभाविक है की उच्च गुणवत्ता कि औषधि बनाने के लिए अधिक धन का व्यय करना होता है जिसका असर प्रोडक्ट के मूल्य पे पड़ता है। 

 

.गुडुची (गिलोय)घनबटी मुख्य रूप से किन किन रोगों में उपयोगी है ?

 

डेंगू में प्लेटलेट्स की संख्या में वृद्धि करता है। 

इम्युनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) बढ़ाता है। 

वायरल फीवर में उपयोगी। 

 

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