इर्रिटेबल बोवेल सिंड्रोम (आईबीएस) एक बहुत ही सामान्य पाचन विकार है। वैज्ञानिक अनुसंधान ने इसे तनाव और चिंता से जोड़ा है, लेकिन अभी तक रोग का सही कारण अज्ञात है।आयुर्वेद कई अलग-अलग पाचन विकारों का वर्णन मिलता है जो आईबीएस की श्रेणी में फिट होते है ।
शरीर की किसी भी ऊर्जा में वृद्धि हो सकती है और विषाक्त पदार्थ आमतौर पर ऐसे मामलों में शरीर में मौजूद होते हैं। इर्रिटेबल बोवेल सिंड्रोम के आयुर्वेदिक उपचार में बढ़ी हुई शरीर की ऊर्जा को कम करना,पाचन तंत्र के कार्य को बहाल करना और संचित विषैले पदार्थों को शरीर से बाहर निकालना चाहिए ।
लक्षण:
जी मिचलाना
पेट दर्द और सूजन आना
एनोरेक्सिया होना
सिरदर्द और थकावट होना
पुरानी कब्ज और / या दस्त आना
मल में श्लेष्म / रक्त का आना
कारण:
तनाव और चिंता, संक्रामक दस्त, अल्कोहल, कैफीन या कार्बोनेटेड पेय पदार्थों की अत्यधिक पीना और ज्यादा लैक्टोज / ग्लूटेन युक्त खाना अक्सरआईबीएस का कारण होता है।
आहार और जीवन शैली:
पेट की म्यूकस मेम्ब्रेन में सूजन को कम करने के लिए ताजा फल और सब्जियों के साथ-साथ फलों के रस का उपभोग किया जाना चाहिए।
कैफीन, शराब और कार्बोनेटेड पेय पदार्थों को खाने से बचें।
यदि आपको गैस बनती है, तो आप उन खाद्य पदार्थों से बचना चाहिये जो गैस को बनाते हैं जैसे सेम, गोभी और नींबू के फल भी शामिल हैं।
घरेलु उपचार:
अदरक बाउल सिंड्रोम के कारण सूजन को कम करने के लिए अदरक चाय पीएं या कच्चे अदरक को चबाएं।
एक कप पानी में फ्लेक्ससीड के एक चम्मच उबलकर चाय तैयार करें। रात में इसे पिए ।
रात के खाने के एक घंटे बाद आधा कप ताजा दही के साथ इसबगोल का एक चम्मच लें।
आयुर्वेद के अनुसार इस रोग की चिकित्सा हेतु रोगी की शरीर की संरचना, प्रधान दोष और उसका आहार-विहार, इन सब कारकों को ध्यान में रखा जाता है. दोष के अनुसार औषधि का प्रयोग किया जाता है. रोगी को जीवनचर्या में सुधार के लिए लाभदायक परामर्श भी दिया जाता है.
चूंकि तनाव अक्सर इस विकार का एक महत्वपूर्ण कारण होता है,अतः उपचार की एक महत्वपूर्ण पंक्ति में मनोविज्ञान मार्गदर्शन बाली जड़ी-बूटियों को और मन और तंत्रिका तंत्र को पोषित करने बाली आयुर्वेदिक औषधियों को शामिल करना चाहिए।
वातज ग्रहिणी:
अदरक, मीठी सौंफ, ज़ीरा, इलाइची, दालचीनी आदि से पाचन क्रिया सुधरती है.
हरीतकी के उपयोग से शरीर में मौजूद अधिक वात बाहर निकल जाता है. रात्रि को सोने से पूर्व इसका सेवन करना चाहिए.
शतावरी, अश्वगंधा, तिल तैल, ये तीनो ही वात को शांत करते हैं. अतः इनका उपयोग लाभकारी है. स्नान से पूर्व तिल तेल से पेट पर हल्की मालिश करना अच्छा रहता है. मीठे, खट्टे और नमकीन तीनों तरह के भोजन का सेवन करना चाहिए .
पित्तज ग्रहिणी:
आमलकी का प्रयोग रोगी के लिए हितकारक है
धनिया और पुदीना युक्त पानी पीने से बढ़ा हुआ पित्त नियंत्रित होता है
चंदन को घी में सिद्ध कर उसमें मीठी सौंफ, काली मिर्च, पिपल्ली मिलाकर सेवन करने से बहुत लाभ मिलता है.
मुस्ता के सेवन से इस रोग से लाभ प्राप्त होती है
घृत-कुमारी का रस, हल्दी, मंजिष्ठा , शतावरी ये सब पित्त को शांत कर पुष्टि प्रदान करते हैं.
मीठे, तिक्त (bitter) और कशाय(astringent) पदार्थों का सेवन अधिक करें.
कफज़ ग्रहिणी
अदरक, नींबू का रस, शहद द्वारा बढ़े हुए कफ को नियंत्रित किया जाता है.
त्रिकटु चूर्ण के प्रयोग से आँतों में फँसे विषैले मल को शरीर से बाहर निकालने में सहायक औषधि है.
हल्दी, इलाइची , दालचीनी, लोंग, ज़ीरा, जायफल, पिप्पली, सेंधा नमक का प्रयोग हितकर है.
गरम पानी के साथ आधा चम्मच हिंगवाष्टक चूर्ण भोजन खाने के 1-2 घंटे पहले ले .
कटु, तिक्त और कशाय पदार्थों का सेवन अधिक करना चाहिए.
ध्यान दें: औषधियो का सेवन चिकित्सक देख रेख में ले I
उपचार के साथ उपचार