उच्च रक्तचाप रक्त वाहिकाओं की दीवारों के खिलाफ खून के द्वारा लगाया बल होता है जो ह्रदय और हृदय रक्त वाहिकाओं द्वारा किये काम पर निर्भर करता है।
उच्च रक्तचाप (आयुर्वेद में रक्त गत वात के रूप में जाना जाता है) धमनियों में खून का बढ़ा दबाव है।
रक्तचाप में वृद्धि एक व्यक्ति की उम्र, लिंग, शारीरिक और मानसिक गतिविधियों,परिवार के इतिहास और आहार पर निर्भर करती है।
एक स्वस्थ वयस्क व्यक्ति का सामान्य रक्तचाप 120 एमएमएचजी सिस्टोलिक और 80 एमएमएचजी डायस्टोलिक होता है।
उच्च रक्तचाप आयुर्वेदिक उपचार के लिए मुख्य उद्देश्य उच्च रक्तचाप के मूल कारण की पहचान करना है|
ऐसी आयुर्वेदिक दवा व् निदान का प्रबंध करना है जो बीपी के मूल कारण को हटा सकती है।
ऐसा होने के लिए, यह आवश्यक है कि पाचन में सुधार हो और पाचन अग्नि को मजबूत किया जाये ।
दूसरा, हृदय के चैनलों में पहले से जमा होने वाले विषाक्त पदार्थों को समाप्त करना है।
और आखिर में स्ट्रेस को कम करने के - ध्यान, योग और प्राणायाम को करना चाहिए जिससे कि मन शांत और स्थिर रहता है
लक्षण:
गर्दन के पीछे दर्द होना (ओसीसीपिटल एरिया में दर्द)
सिरदर्द
घवराहट होना (Palpitations)
चक्कर आना
थकान
कारण:
उच्च रक्तचाप तीनों दोषों की विकृति, हृदय तथा रक्त धमनियाँ में उत्पन्न विकार से होता है. रक्त धमनियों में वयान वायु की गड़बड़ी के लक्षण पाए जाते हैं. इसलिए उपचार में इन सब लक्षणों पर ध्यान दिया जाना चाहिए.
आजकल असंतुलित आहार जैसे फास्ट फूड, मिर्च मसाला युक्त,नमकीन भोजन करने और गतिहीन जीवन शैली उच्च रक्तचाप के प्रमुख कारण हैं।
तनाव, चिंता और नकारात्मक मानसिक भावनाएं भी रक्तचाप में वृद्धि के कारण होती हैंअन्य कारण परिवार में बीपी का इतिहास, मोटापे, व्यायाम की कमी, उच्च वसा और कम फाइबर आहार, चाय, कॉफी और परिष्कृत खाद्य पदार्थ आदि का अत्यधिक सेवन आदि हो सकता है| आयुर्वेद के अनुसार यदि पाचन अपूर्ण हो तो भोजन ठीक से पाचन नहीं करता है जिससे पाचन की अशुद्धता या अाम का उत्पादन होता है। यह अाम प्लाज्मा के साथ घोल जाता है और इसे भारी बनाता है। नतीजतन, रक्त का उत्पादन भी भारी या चिपचिपा हो जाता है।यह भारी रक्त विभिन्न चैनलों के माध्यम से फैलता है और विषाक्त पदार्थों को ह्रदय के चैनलों में जमा होना शुरू होता है,यह विषाक्त पदार्थ चैनलों के संकुचन का कारण बनता है।इसलिए रक्त को इन चैनलों के माध्यम से प्रसारित करने के लिए और अधिक दबाव डालना पड़ता है, जिससे उच्च रक्तचाप की स्थिति बनती है।
आहार और जीवन शैली:
नियमित शारीरिक व्यायाम जैसे -हल्के मध्यम प्रकार के एरोबिक व्यायाम सप्ताह में कम से कम 4 से 5 दिनों तक करें | हल्के टहलना,कुछ दुरी तक साइकिल चला सकते हैं।
तनाव से बचना या अपरिहार्य तनाव के प्रबंधन के लिए रणनीतियों का विकास, रक्तचाप नियंत्रण में मदद कर सकता है।
धूम्रपान छोड़ना, ज्यादा शराब न पीना, जल्दी सोना या सुबह ज्यादा देर तक न सोना, उच्च रक्तचाप और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के जोखिम को कम करता है।
मांस, अंडे, ज्यादा नमक, अचार, चाय और कॉफी से बचें।
लहसुन, नींबू, अजमोद, भारतीय गोबी का सेवन (आंवला), तरबूज, अंगूर, स्किम दूध और कॉटेज पनीर का उपयोग बढ़ाएं।
घरेलु उपचार:
- अर्जुन छाल (Terminalia arjuna): शोथ द्वारा ये नतीजे पाये गयें हैं की यह एलोपैथी चिकित्सा में प्रयोग होने वाली Beta-blocker दवाइयाँ की तरह ही अपना कार्य करती है. इसके साथ-साथ यह औषधि, जिगर तथा हृदय की मजबूत बनाती है. इसके चूर्ण की मात्रा ३-६ ग्राम तक सुबह शाम रोगी के बलानुसार दी जाती है | मार्किट में इसका कैप्सूल भी आता है जिसकी मात्रा १-१ कैप्सूल(२५०ंमिलीग्राम -२५०ंमिलीग्राम )सुबह शाम होती है
-
- गोझुरु (Tribulus terrestris): यह औषधि भी रोगनिवारक है तथा इसकी कार्यपद्धति ACE Inhibitors के समान है इसके चूर्ण की मात्रा ३-६ ग्राम तक सुबह शाम रोगी के बलानुसार दी जाती है | मार्किट में इसका कैप्सूल भी आता है जिसकी मात्रा १-१ कैप्सूल(२५०ंमिलीग्राम -२५०ंमिलीग्राम )सुबह शाम होती है .
- वात में
- 125 मिलीग्राम सर्पगंधा और जटामांसी को 2.5 माह तक दिन में तीन बार लेना चाहिए.
- सारस्वत चूर्ण १ग्राम सुबह शाम भी इस रोग के उपचार में लाभदायक है.
- अश्वगंधा से बनी हुई औषधि मिश्रण का सेवन करना चाहिए.
पित्त की विकृति द्वार उत्पन्न रोग में रोगी को अधिक क्रोध आता है, चिड़चिड़ापन, नकसीर फूटना, भयंकर सरदर्द, आँखों का चौधियाना, पाया जाता है.पित्त को शांत करने के लिए 250 मिलीग्राम ब्राहमी का सेवन रोज़ रात्रि मेी करना चाहिए.
- इसके अलावा ब्राहमी रसायन या सारस्वत पाउडर का प्रयोग भी लाभप्रद है.
- कफ की प्रधानता से उत्पन्न होने वाले रोग में व्यक्ति को हल्का सरदर्द, आलस्य, प्रमाद, हाथ-पाँव का फूलना उच्च रक्तचाप के सहित पाए जाते हैं.
- इस अवस्था में रोग के निराकरण के लिए 1 ग्राम गुग्गुलु अथवा अर्जुन छाल चूर्ण दिन में दो बार सेवन करना चाहिए.
- 250 ग्राम शिलाजीत दिन में तीन माह के लिए दिन में तीन बार लाभप्रद है.
- रक्त धमनियों को साफ़ करने के लिए 1 ग्राम त्रिफला गुग्गूल का 3 महीने के लिए उपयोग फ़ायदेमंद है.
- इस अवस्था में यदि 100 मिलीग्राम एलाईची और दालचीनी का प्रयोग दिन में 3 बार 3 महीने तक किया तो लाभदायक सिद्ध होता है.
नोट: ये औषधि चिकित्सक की देख रेख में ही प्रयोग करना चाहिए.
ध्यान दें: कृप्या औषधि चिकित्सक की देख रेख में ले
उपचार के साथ उपचार